Monday, December 9, 2019

दिल्ली की आग में मरने वाले बिहार से आए ये मज़दूर 'कौन थे'

मोहम्मद बबलू, मोहम्मद अफ़साद और मोहम्मद मुशर्रफ़.

ये वो नाम हैं जो शनिवार की शाम तक ज़िंदा थे. आँखों में अपने अपने संघर्ष, सपने और संकटों को लिए जी रहे थे.

ये बिहार में अपने गाँवों से हज़ार किलोमीटर का सफ़र तय करके दिल्ली के एक कारखानों में हर रोज़ 12 से 15 घंटों तक काम कर रहे थे.

ये जहां काम करते थे, वहीं जगह बनाकर सो जाते थे. जितना कमाते थे, उसमें से अधिकतम हिस्सा अपने गाँव भेज देते थे ताकि ये अपने माई-बाबा और बच्चों को दो वक़्त की रोटी दे सकें.

लेकिन रविवार सुबह दिल्ली की अनाज़ मंडी में लगी आग में इन चार युवाओं समेत 40 से ज़्यादा मजदूरों की मौत हो गई.

और ये नाम सरकारी फाइलों में क़ैद हो गए. मरने वालों में बच्चे भी शामिल हैं.

कई ऐसे परिवार हैं, जिनमें अब कमाने वाला कोई नहीं बचा है.

कई परिवार ऐसे हैं, जिनके गाँव घर से छह सात लड़कों की मौत हुई है.

लेकिन मोतिहारी, सहरसा, सीतामढ़ी से आने वाले लोग कौन थे और ये किन हालातों में दिल्ली आए थे.

'पैसे कमाकर, भाई की शादी करानी है'
ये कहानी 20 साल के मोहम्मद बबलू की है, जो बिहार के मुजफ़्फ़रपुर से काम करने के लिए दिल्ली आए थे.

बबलू के भाई मोहम्मद हैदर का अपने भाई के ग़म में रो-रोकर बुरा हाल है.

हैदर बताते हैं, "मेरा भाई मुझसे बहुत प्यार करता था. बहुत अच्छा था. काम पर आने से पहले हमसे बोला था कि 'भाई हम दोनों भाई मिलकर काम करेंगे और घर पर पुताई करवाएंगे. फिर शादी करवाएंगे.' ये कैसा रंग हुआ कि मेरी ज़िंदगी की रंग ही उजड़ गया."

बबलू उस परिवार से आते थे जिनके भाई मोहम्मद हैदर भी पिछले काफ़ी सालों से दिल्ली में इलेक्ट्रिक रिक्शा चलाकर अपने घरवालों को पैसा भेजते हैं.

भाई के रास्ते पर चलकर ही बबलू भी मेहनत करके कमाने के लिए कुछ समय पहले ही दिल्ली आए थे.

बबलू और उनके भाइयों ने तिनका-तिनका जोड़कर अपने लिए एक घर खड़ा किया था.

बबलू अब अपनी मेहनत की कमाई से इस घर को पुतवाकर अपने बड़े भाई की शादी करवाना चाहते थे.

बबलू को अभी ज़्यादा पैसे नहीं मिलते क्योंकि काम नया नया शुरू किया था.

लेकिन कुछ साल बाद अगर वो यही काम करते रहते तो उनकी मासिक आय 15-20 हज़ार रुपए तक पहुंच सकती थी.

इस अग्निकांड में बबलू समेत उनके ही घर और गांव के पांच-छह लोगों की मौत हुई है.

मोहम्मद अफ़साद की कहानी भी बबलू और उनके परिवार जैसी ही है.

मोहम्मद अफ़साद दिल्ली में बीते काफ़ी समय से काम कर रहे थे.

बिहार के सहरसा से आने वाले 28 साल के मोहम्मद अफ़साद इसी कारखाने में काम करते थे और अपने 20 साल की उम्र वाले भाई को भी गांव से काम सिखाने के लिए बुलाया था.

अफ़साद अपने घर में अकेले कमाने वाले शख़्स थे. उनके घर में उनकी पत्नी, दो बच्चे और वृद्ध माँ-बाप हैं.

अफ़साद की मौत की ख़बर सुनकर दौड़े चले आए उनके भाई मोहम्मद सद्दाम बताते हैं, "ये हमारे चाचा का लड़का था. मैं भी कारखाने में काम करता हूं. और ये भी करता था. गांव-घर छोड़कर दिल्ली आया था कि कुछ कमा सके. मेरा भाई बहुत मेहनती था. अब कौन है इसके परिवार में. सिर्फ़ एक लड़का बचा है और वो भी अभी सिर्फ़ 20 साल का है. बताइए अब कैसे क्या होगा."

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