Friday, December 27, 2019

2020 में दुनिया की नज़रें किन मुद्दों पर होगी?

नया साल और एक नया दशक 1 जनवरी 2020 से शुरू हो रहा है जिसके लेकर अलग-अलग भविष्यवाणियां जारी हैं.

लेकिन भविष्य में इसको लेकर क्या सुर्ख़ियां बन रही होंगी?

यहां हमने उन लोगों और कार्यक्रमों की सूची बनाई है जो आने वाले साल में चर्चा बटोरेंगे.

अमरीकी राष्ट्रपति की दौड़ को लेकर अभी से अंदाज़ा लगाना जल्दबाज़ी होगी.

व्हाइट हाउस में अभी रिपब्लिकन के डोनल्ड ट्रंप सत्ता में है. उनके ख़िलाफ़ अभी महाभियोग की प्रक्रिया जारी है. वहीं, डेमोक्रेटिक पार्टी ने अभी भी उम्मीदवार नहीं चुना है.

लेकिन यह तय है कि सीनेट की रेस महत्वपूर्ण होगी क्योंकि अमरीका में 3 नवंबर से इसकी चुनावी प्रक्रिया शुरू होगी.

ऊपरी सदन में नियंत्रण राष्ट्रपति के लिए चीज़ें आसाना या कठिन बना देता है. सीनेट ही विधायी एजेंडों, बजट और क़ानूनी फ़ैसलों पर अंतिम मुहर लगाता है.

वर्तमान में रिपब्लिकन्स का 100 सीटों में से 53 पर क़ब्ज़ा है लेकिन ट्रंप की पार्टी चुनावों में 23 सीटों पर क़ब्ज़ा कर चुकी है जबकि डेमोक्रेट्स के पास 12 सीटें हैं. निचले सदन हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव में इस समय डेमोक्रेट्स का बहुमत है.

ट्रंप फिर से चुनाव जीत सकते हैं लेकिन सीनेट में पासा पलटा तो यह उनके लिए मुश्किल होगा.

2019 के आधे बचे साल में इराक़, मिस्र और लेबनान में विरोध प्रदर्शन हुए जबकि शुरुआती आधे साल में अल्जीरिया और सूडान में प्रदर्शन हुए थे. इसके बाद विश्लेषकर्ताओं ने इसे नई 'अरब क्रांति' कहा था.

इसको 2011 से जोड़कर देखा गया था जब अरब देशों में विरोध प्रदर्शन चल रहे थे.

कार्नेज मध्य पूर्व केंद्र में शोधकर्ता दालिया ग़ानम कहती हैं, "2019 में अल्जीरिया, सूडान, इराक़ और लेबनान जैसे चार देशों ने विरोध प्रदर्शन देखे 2011 की 'अरब स्प्रिंग' से ये देश बाहर थे."

लेकिन क्या 2020 में ये प्रदर्शन और गति पकड़ेंगे? इस पर पेरिस की पीएसएल यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर और अरब मामलों के जानकार इशाक दीवान कहते हैं, "लोगों की असहमति की ये लहर दूसरे देशों तक भी फैल सकती है."

वो कहते हैं, "2011 में प्रदर्शनों की लहर आर्थिक स्थिति के कारण पैदा हुई थी. तब आर्थिक गति धीमी थी, लोगों का क़र्ज़ बढ़ गया था और बेरोज़गारी दर बहुत ऊंची थी."

"2011 के विरोध प्रदर्शनों के दौरान लोगों में एक तड़प थी और आज हो रहे प्रदर्शनों में एक भूख है."

हमारे सौर मंडल के बाहर किसी दूसरे ग्रह का अस्तित्व होना कोई नई बात नहीं है. 1990 के बाद से अब तक 4,000 ग्रह खोज चुकी है.

18 दिसंबर को प्रक्षेपित किए गए कीओप्स स्पेस टेलीस्कोप के ज़रिए इस दिशा में नए द्वार खुलने जा रहे हैं. यूरोपीयन स्पेस एजेंसी का यह अंतिरक्षयान अगले तीन सालों में 400-500 नए जटिल ग्रहों की खोज करेगा.

यह अंतरिक्षयान अगली पीढ़ी के खोजकर्ताओं के लिए अन्य ग्रहों को लेकर अधिक जानकारियां देगा. 2021 में नासा का जेम्स वेब टेलीस्कोप प्रक्षेपित किया जाना है जिसको लेकर भी यह जानकारियां देगा.

हॉन्गकॉन्ग में कई महीनों तक चल विरोध प्रदर्शनों के बाद उसके नेता आने वाले साल में एक नई उभरती हुई चुनौती देख सकते हैं.

'पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना' यानी चीन और 'रिपब्लिक ऑफ़ चाइना' यानी ताइवान एक-दूसरे की संप्रभुता को मान्यता नहीं देते. दोनों ख़ुद को आधिकारिक चीन मानते हुए मेनलैंड चाइना और ताइवान द्वीप का आधिकारिक प्रतिनिधि होने का दावा करते रहे हैं.

बीजिंग के लिए यह एक बुरी ख़बर हो सकती है क्योंकि चुनावी सर्वे में कहा जा रहा है कि साई इंग-वेन दोबारा राष्ट्रपित चुनी जा सकती हैं.

साई की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी एक मज़बूत राष्ट्रवादी पार्टी है और स्वतंत्रता समर्थक रुख़ रखने के कारण हॉन्गकॉन्ग में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों को उसने हवा दी है.

17 दिसंबर को आए सर्वे में साई अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी हान कुओ-यू (बीजिंग समर्थित उम्मीदवार) पर 38 पॉइंट की बढ़त बनाए हुए हैं.

30 मई 2019 को अफ़्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (एएफ़सीएफ़टीए) अस्तित्व में आ गया है. देशों की संख्या (54) के आधार पर यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र है.

इसको 'राजनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक क्षेत्र के मील के पत्थर' के रूप में परिभाषित किया गया है जो इस प्रायद्वीप की वृद्धि में सहायक होगा.

मुक्त व्यापार जुलाई से शुरू हो रहा है और उम्मीद है कि इससे अफ़्रीकी देशों में व्यापार को प्रोत्साहन मिलेगा. साल 2018 में अफ़्रीकी देशों के बीच व्यापार 20 फ़ीसदी से कम रहा था.

अमरीकी तैराक मार्जोरी गैस्ट्रिंग 13 वर्ष की थीं जब उन्होंने 1936 में बर्लिन गेम्स में स्वर्ण पदक जीता था और वो सबसे युवा ओलंपिक चैंपियन बनी थीं.

हालांकि, ये भी माना जाता है कि 7-10 वर्ष की आयु के एक फ़्रेंच लड़के ने डच नौकायान टीम को 1900 में पेरिस ओलंपिक में शीर्ष पुरस्कार दिलाया था.

लेकिन स्काई ब्राउन इससे भी आगे जा रही हैं. 11 वर्षीय ब्रिटिश स्केटबॉर्डर ने सितंबर में विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था. अगर वो ओलंपिक के लिए क्वॉलिफ़ाई करती हैं तो ब्रिटेन की सबसे युवा ओलंपिक खिलाड़ी होंगी.

ओलंपिक खेल 24 जुलाई से 9 अगस्त तक टोक्यो में होने हैं. ओलंपिक में स्केटबोर्डिंग के अलावा, वॉल-क्लाइंबिंग, सर्फिंग, कराटे और सॉफ़्टबॉल को पहली बार शामिल किया जा रहा है.

Monday, December 9, 2019

दिल्ली की आग में मरने वाले बिहार से आए ये मज़दूर 'कौन थे'

मोहम्मद बबलू, मोहम्मद अफ़साद और मोहम्मद मुशर्रफ़.

ये वो नाम हैं जो शनिवार की शाम तक ज़िंदा थे. आँखों में अपने अपने संघर्ष, सपने और संकटों को लिए जी रहे थे.

ये बिहार में अपने गाँवों से हज़ार किलोमीटर का सफ़र तय करके दिल्ली के एक कारखानों में हर रोज़ 12 से 15 घंटों तक काम कर रहे थे.

ये जहां काम करते थे, वहीं जगह बनाकर सो जाते थे. जितना कमाते थे, उसमें से अधिकतम हिस्सा अपने गाँव भेज देते थे ताकि ये अपने माई-बाबा और बच्चों को दो वक़्त की रोटी दे सकें.

लेकिन रविवार सुबह दिल्ली की अनाज़ मंडी में लगी आग में इन चार युवाओं समेत 40 से ज़्यादा मजदूरों की मौत हो गई.

और ये नाम सरकारी फाइलों में क़ैद हो गए. मरने वालों में बच्चे भी शामिल हैं.

कई ऐसे परिवार हैं, जिनमें अब कमाने वाला कोई नहीं बचा है.

कई परिवार ऐसे हैं, जिनके गाँव घर से छह सात लड़कों की मौत हुई है.

लेकिन मोतिहारी, सहरसा, सीतामढ़ी से आने वाले लोग कौन थे और ये किन हालातों में दिल्ली आए थे.

'पैसे कमाकर, भाई की शादी करानी है'
ये कहानी 20 साल के मोहम्मद बबलू की है, जो बिहार के मुजफ़्फ़रपुर से काम करने के लिए दिल्ली आए थे.

बबलू के भाई मोहम्मद हैदर का अपने भाई के ग़म में रो-रोकर बुरा हाल है.

हैदर बताते हैं, "मेरा भाई मुझसे बहुत प्यार करता था. बहुत अच्छा था. काम पर आने से पहले हमसे बोला था कि 'भाई हम दोनों भाई मिलकर काम करेंगे और घर पर पुताई करवाएंगे. फिर शादी करवाएंगे.' ये कैसा रंग हुआ कि मेरी ज़िंदगी की रंग ही उजड़ गया."

बबलू उस परिवार से आते थे जिनके भाई मोहम्मद हैदर भी पिछले काफ़ी सालों से दिल्ली में इलेक्ट्रिक रिक्शा चलाकर अपने घरवालों को पैसा भेजते हैं.

भाई के रास्ते पर चलकर ही बबलू भी मेहनत करके कमाने के लिए कुछ समय पहले ही दिल्ली आए थे.

बबलू और उनके भाइयों ने तिनका-तिनका जोड़कर अपने लिए एक घर खड़ा किया था.

बबलू अब अपनी मेहनत की कमाई से इस घर को पुतवाकर अपने बड़े भाई की शादी करवाना चाहते थे.

बबलू को अभी ज़्यादा पैसे नहीं मिलते क्योंकि काम नया नया शुरू किया था.

लेकिन कुछ साल बाद अगर वो यही काम करते रहते तो उनकी मासिक आय 15-20 हज़ार रुपए तक पहुंच सकती थी.

इस अग्निकांड में बबलू समेत उनके ही घर और गांव के पांच-छह लोगों की मौत हुई है.

मोहम्मद अफ़साद की कहानी भी बबलू और उनके परिवार जैसी ही है.

मोहम्मद अफ़साद दिल्ली में बीते काफ़ी समय से काम कर रहे थे.

बिहार के सहरसा से आने वाले 28 साल के मोहम्मद अफ़साद इसी कारखाने में काम करते थे और अपने 20 साल की उम्र वाले भाई को भी गांव से काम सिखाने के लिए बुलाया था.

अफ़साद अपने घर में अकेले कमाने वाले शख़्स थे. उनके घर में उनकी पत्नी, दो बच्चे और वृद्ध माँ-बाप हैं.

अफ़साद की मौत की ख़बर सुनकर दौड़े चले आए उनके भाई मोहम्मद सद्दाम बताते हैं, "ये हमारे चाचा का लड़का था. मैं भी कारखाने में काम करता हूं. और ये भी करता था. गांव-घर छोड़कर दिल्ली आया था कि कुछ कमा सके. मेरा भाई बहुत मेहनती था. अब कौन है इसके परिवार में. सिर्फ़ एक लड़का बचा है और वो भी अभी सिर्फ़ 20 साल का है. बताइए अब कैसे क्या होगा."

Monday, December 2, 2019

क़ानूनी तरीके से लाखों डॉलर कैसे कमा रहे हैं भारतीय हैकर्स

2016 की गर्मियों में किसी दिन प्रणव हिवरेकर फ़ेसबुक के आधुनिकतम फीचर में मौजूद कमियों को तलाशने के मिशन पर निकले. प्रणव हिवरेकर फुल टाइम हैकिंग का काम करते हैं.

फ़ेसबुक ने क़रीब आठ घंटे पहले ही, अपने यूजरों को नया फीचर देने की घोषणा की थी जिसके मुताबिक यूजर्स वीडियो पोस्ट पर भी कमेंट कर सकते थे.

प्रणव ने कमियों को जानने के लिए सिस्टम की हैकिंग शुरू की, ख़ासकर वैसी कमी जिसका इस्तेमाल करके साइबर अपराधी कंपनी के नेटवर्क को नुकसान पहुंचा सकते थे और डेटा चुरा सकते थे.

इस दौरान प्रणव को वह कोड मिला जिसके जरिए वे फ़ेसबुक का कोई भी वीडियो डिलीट कर सकते थे.

पुणे के इथिकल हैकर प्रणव बताते हैं, "मैंने देखा कि उस कोड की मदद से कोई भी वीडियो डिलीट किया जा सकता था, अगर मैं चाहता था मार्क जुकरबर्ग का अपलोड किया वीडिया भी डिलीट कर सकता था."

उन्होंने इस कमी या बग के बारे में फ़ेसबकु को उसके 'बग बाउंटी' प्रोग्राम के तहत बताया. 15 दिनों के भीतर फ़ेसबुक ने उन्हें पांच अंकों वाली इनामी रकम से सम्मानित किया वो भी डॉलर में.

कुछ इथिकल हैकर काफ़ी पैसा कमा रहे हैं और यह इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है.

इस तरह के बग हंटिंग का काम करने वाले ज्यादा लोग युवा होते हैं. इंडस्ट्री के अनुमान के मुताबिक हैकरों में दो तिहाई की उम्र 18 से 29 साल के बीच है.

इन लोगों को बड़ी कंपनियां कोई भी खामी बताने पर बड़ी इनामी राशि देती है. वे किसी साइबर अपराधी से पहले वेब कोड की कमी का पता लगाते हैं.

जिन बग का पहले पता नहीं चल पाया हो उन्हें तलाशना बेहद मुश्किल काम होता है, लिहाजा इस काम के लिए उन्हें हज़ारों डॉलर की रकम मिलती है, यह एक तरह से इथिकल हैकरों के लिए बड़ी इनसेंटिव होती है.

उत्तर भारत के इथिकल हैकर शिवम वशिष्ठ साल में सवा लाख डॉलर की आमदनी कर लेते हैं. वे बताते हैं, "इस तरह की इनामी रकम ही मेरी आमदनी का एकमात्र स्रोत है. मैं दुनिया की बड़ी कपंनियों के लिए क़ानूनी तौर पर हैकिंग का काम करता हूं और इसके लिए पैसे मिलते हैं. यह एक तरह से फन भी है और चुनौतीपूर्ण काम भी."

इस क्षेत्र में कामयाबी हासिल करने के लिए किसी आधिकारिक डिग्री या अनुभव की ज़रूरत नहीं है. शिवम ने अन्य हैकरों की तरह से यह काम आनलाइन रिसोर्सेज और ब्लॉग के जरिए सीखा है.

शिवम बताते हैं, "हैकिंग सीखने के लिए मैंने कई रातें जागकर बिताई है ताकि सिस्टम पर अटैक कर सकूं. मैं ने दूसरे साल के बाद यूनिवर्सिटी की पढ़ाई छोड़ दी थी."

अब उन्होंने अमरीकी हैकर जेसे किन्सर की तरह कोड में कमी तलाशने की अपनी लत को चमकदार करियर में तब्दील कर लिया है.

जेसे किन्सर ईमेल के ज़रिए बताती हैं, "कॉलेज के दिनों में हैकिंग में मेरी दिलचस्पी शुरू हुई थी, जब मैं ने मोबाइल हैकिंग और डिजिटल हैकिंग पर काफ़ी सारा रिसर्च करना शुरू किया था."

जेसे किन्सर बताते हैं, "एक प्रोजेक्ट के तहत मैंने देखा कि एक ख़राब ऐप एंड्रायड ऐप स्टोर में बिना पता चले प्रवेश कर चुका था."

विशेषज्ञों का कहना है कि इनामी रकम मिलने से इथिकल हैकर मोटिवेटेड रहते हैं. डाटा सिक्यूरिटी फर्म इम्प्रेवा के चीफ टेक्नालॉजी ऑफ़िसर टेरी रे बताते हैं, "इन कार्यक्रमों के ज़रिए टेक सेवी पेशेवरों को एक क़ानूनी विकल्प मिलता है नहीं तो वे हैकिंग करके और डाटा चुराकर बेचने का काम करने लगेंगे."

साइबर सिक्यूरिटी फर्म हैकरवन के मुताबिक, 2018 में अमरीका और भारत के हैकरों ने सबसे ज़्यादा इनामी रकम जीतने का काम किया. इनमें से कुछ हैकर तो साल में 3.5 लाख डॉलर से भी ज़्यादा कमा रहे हैं.

हैकिंग की दुनिया में गीकब्वॉय के नाम से मशहूर संदीप सिंह बताते हैं कि इसमें काफ़ी मेहनत करनी होती है.

वे कहते हैं, "मुझे अपनी पहली वैध रिपोर्ट और इनामी रकम जीतने में छह महीने का समय लगा और इसके लिए मैंने 54 बार आवेदन किया था."

हैकर वन, बग क्राउड, सायनैक और अन्य कंपनियां अब बड़ी बड़ी कंपनियों और सरकार की ओर से ऐसी इनामी प्रोग्राम चला रही हैं.

ऐसी कंपनियां आम तौर पर इथिकल हैकरों के काम को आंकने, उनके काम की जांच करने और उपभोक्ताओं के बीच गोपनीयता बरतने का काम करते हैं.

दुनिया की ऐसी तीन बड़ी इनामी रकम वाले प्रोग्राम चलाने वाली कंपनियों में एक हैकरवन की सूची में पांच लाख 50 हज़ार हैकर संबंधित हैं. हैकरवन के हैकर ऑपरेशन प्रमुख बेन सादेगहिपोर बताते हैं कि उनकी कंपनी अब तक 70 मिलियन डॉलर की रकम इनाम के तौर पर बांट चुकी है.

बेन सादेगहिपोर कहते हैं, "टेक इंडस्ट्री में बग की पहचान पर इनामी रकम देने का चलन नया है, लेकिन अब इनाम की रकम बढ़ रही है क्योंकि संस्थाएं अपने सुरक्षा को बेहतर करना चाहती हैं."